Friday, September 10, 2010

क्या तुम्हारा होना सिर्फ़ तसव्वुर है ?

मैंने...
तुम्हारी आखों में झाँका
देखा...
वहाँ समन्दर था
और थीं...
उत्ताल तरंगें
बाँहों में लपेटती हुई
सारा आकाश,
और...तुम
कश्ती सी थिरकती
यहाँ...वहाँ
मैंने तुम्हारी आँखों को चूमा
और...पी गया
सारा समन्दर और आकाश
क्या वह तसव्वुर था...
तुम कहीं नहीं?

2 comments: