Friday, December 31, 2010

स्रष्टि का मृत्युन्मुखी मौन तो नहीं ?


खिडकी के बाहर
एक और खिडकी
फिर कई कई खिड़कियाँ
खुलती लगातार
बाहर से भीतर की ओर
गहन अंधकार ..... मौन अंधकार
क्या भीतर कोई है ?

अपना होना ?
वह मृत है या फिर जीवित ?
वह नहीं जनता
कोई भी नहीं जनता ?


कोई नहीं जनता
भीतर जो है
वह पशु है ......
या ..... मनुष्य ?
या फिर कुछ भी नहीं
सिर्फ ..... अंधकार ...
अंधकार ..... घटाटोप अंधकार .... !!
क्या यह स्रष्टि का मृत्युन्मुखी मौन तो नहीं है ?

1 comment:

  1. खिड़कियां खुलती हैं बाहर से भीतर की ओर !!
    वाह , सुन्दर ।
    किन्तु जब खिड़कियां खुलती हैं तो फिर अंधकार क्यों !!
    खिड़कियों पर कवि का आरोप है यह ।

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