
खिडकी के बाहर
एक और खिडकी
फिर कई कई खिड़कियाँ
खुलती लगातार
बाहर से भीतर की ओर
गहन अंधकार ..... मौन अंधकार
क्या भीतर कोई है ?
अपना होना ?
वह मृत है या फिर जीवित ?

वह नहीं जनता
कोई भी नहीं जनता ?
कोई नहीं जनता
भीतर जो है
वह पशु है ......
या ..... मनुष्य ?
या फिर कुछ भी नहीं
सिर्फ ..... अंधकार ...
अंधकार ..... घटाटोप अंधकार .... !!
क्या यह स्रष्टि का मृत्युन्मुखी मौन तो नहीं है ?
खिड़कियां खुलती हैं बाहर से भीतर की ओर !!
ReplyDeleteवाह , सुन्दर ।
किन्तु जब खिड़कियां खुलती हैं तो फिर अंधकार क्यों !!
खिड़कियों पर कवि का आरोप है यह ।