चुप्पी.. ..
वह भी मध्य रात्री की
सन्नाटे की छाती में
ठुकी हुई एक कील ..... !
सलीब ......
अपने कंधे पर ढोता
लंगड़ाता समय .... !
मृत्यु .....
दिवस की चिता के धुएं पर
सुखाती अपने केश ..... !
सपनों में बार बार दिखना
यह किस बात का संकेत है ?
उस आदमी के लिए तो नहीं
जो बेंच पर बैठा एकांत में
अपने ही मुर्दा अतीत से
करता रहता है बात .... !
चुप्पी सलीब और मृत्यु के यह बिम्ब अद्भुत हैं । यह कविता मन की बहुत सारी अनछुई परतों को खोलती है ।
ReplyDeleteआ. दादा , कविताओं के इलावा भी कुछ लिखें . कवितायेँ तो आपकी अदभुत हैं .
ReplyDeleteदनादन कविताएँ !!
ReplyDeleteचश्मेबद्दूर !
दादा ! आप इतना सुन्दर लिख रहे हो कि तमाम कवि भौचक हैं .
कई लोगो ने पूछा है कि दादा
इन दिनों कहाँ बैठ रहे हैं .